टोपी पहना दी जाती है तो कभी पहननी पड़ जाती है
टोपी का भी अपना इतिहास है. क्षेत्र व समुदाय से लेकर अपनी अलग पहचान बनाने के लिए भी टोपी पहनने का रिवाज रहा है. बाॅलीवुड से लेकर कविता हो या शायरी या फिर मुहावरा, टोपी कहीं नहीं छूटी है. हर ज... Read more
उत्तराखण्ड का इतिहास भाग- 2
प्रागैतिहासिक काल- गढ़वाल और कुमाऊँ की पहाड़ियों और उनके तलहटी क्षेत्रों में प्रागैतिहासिक काल के संबंध में अभी तक अधिक कार्य नहीं हुआ है. प्रागैतिहासिक काल इतिहास का वह काल है जिसके संबंध में... Read more
जयानन्द भारती ने 6 सितम्बर को पौड़ी दरबार में लगाया था ‘गो बैक मैलकम हेली’ का नारा
सविनय अवज्ञा आन्दोनल के दूसरे दौर से पहले कांग्रेस के बड़े नेताओं को गिरफ्तार किया जा चुका था. नेताओं और कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के कारण पौड़ी की जनता में असाधारण चुप्पी थी. इन दिनों संयुक्त... Read more
उत्तराखंड की काल कोठरी त्रासदी
उत्तराखण्ड में अनेक स्थानों पर सविनय अवज्ञा आन्दोलन ‘जंगलात आन्दोलन’ का रूप ले चुका था. पिथौरागढ़, लोहाघाट, चंपावत में जंगल सत्याग्रह तेजी से फैला. 1930 से 1932 के बीच पूरे राज्य... Read more
अल्मोड़े का झंडा सत्याग्रह
1930 में सविनय अवज्ञा आन्दोलन का पूरे देश में अलग-अलग स्वरूप था. उत्तराखंड में भी सविनय अवज्ञा आन्दोलन के विभिन्न रूप देखे गये. अल्मोड़े में तो सविनय अवज्ञा आन्दोलन आन्दोलन झंडा सत्याग्रह के... Read more
महात्मा गाँधी का कौसानी प्रवास
भारत की आजादी के आन्दोलन में उत्तराखण्ड के कुमाऊं का स्वर्णिम योगदान रहा है. 1921 के कुली बेगार जैसे आन्दोलनों में बागेश्वर के स्थानीय नागरिकों ने गजब की राष्ट्रीय चेतना का परिचय दिया. जिस स... Read more
नमक सत्याग्रह और नैनीताल
12 मार्च 1930 को महात्मा गांधी ने साबरमती से डांडी यात्रा प्रारंभ कर दी. डांडी यात्रा में उत्तराखंड से तीन सत्याग्रही अल्मोड़े के ज्योतिराम काण्डपाल, भैरव दत्त जोशी और देहरादून के खडग बहादुर... Read more
बिनसर में इटली का संत
लम्बे धवल केश और वैसी ही लम्बी धवल दाढ़ी वाले उस खूबसूरत अंगरेज़ को देखकर किसी को भी धोखा हो सकता था कि वह धर्म-प्रचारक या बाबा टाइप की कोई चीज़ होगा. बिनसर-कसारदेवी-अल्मोड़ा के इलाके में चार-पा... Read more
सोलहवीं सदी में बागेश्वर गए थे गुरु नानकदेव जी
उत्तराखण्ड में सिख सम्प्रदाय का प्रसार -1 सिख मत के साथ उत्तराखंड का संपर्क इसके प्रवर्तक गुरु नानकदेव जी के समय में ही हो चुका था. ज्ञानी ज्ञानसिंह द्वारा लिखे गए ग्रन्थ ‘गुरु खालसा’ में वर... Read more
[पिछली क़िस्त: हल्द्वानी के कुछ पुराने परिवार] नरोत्तम शारदा पहाड़ से आने वाली बहुमूल्य जड़ी-बूटियों के कारोबारी हुआ करते थे. शारदा मूलतः अमरोहा के रहने वाले थे. उन्होंने 1934 में अपना कारोबार... Read more