हल्द्वानी के इतिहास के विस्मृत पन्ने: 61
1860 के करीब पटवा बिरादी ने रामपुर से आकर हल्द्वानी में कारोबार शुरू किया था. तब पैंठ पड़ाव में सड़के किनारे बैठकर चूड़ी-चरेऊ, धमेली-फूना इत्यादि सामान ये लोग बेचा करते थे. मूल रूप से बेलियों क... Read more
हल्द्वानी के इतिहास के विस्मृत पन्ने: 60
करीब सवा सौ साल पूर्व अपने मूल स्थान जिला सीकर राजस्थान के ग्राम कांवट निकट नीम का थाना से रानीखेत पहुंचे रामनिवास जी के तीन पुत्र –सूरजमल, ब्रदीप्रसाद, जगदीश प्रसाद अग्रवाल हुए. इस पर... Read more
हल्द्वानी के इतिहास के विस्मृत पन्ने: 59
सन 1900 के करीब अलीगढ़ के गांव काजमाबाद से रामचन्द्र जी भी यहां आये और साझे में हलवाई की दुकान पर कार्य शुरू कर दी. बाद में उन्होंने नया बाजार में खुद की हलवाई की दुकान खोली और फिर रस्सी बाजा... Read more
उत्तराखण्ड के बौद्ध स्थविर
उत्तराखंड का इतिहास भाग – 8 गंगा और रामगंगा तक फैली भाबर की उत्तरी सीमा पर फैली शिवालिक की निचली शाखा का प्राचीन नाम मयूरपर्वत या मोरगिरी था. गंगाजी के पूर्वी तट से चंडीघाट होकर लक्ष्मणझूला... Read more
हल्द्वानी के इतिहास के विस्मृत पन्ने: 58
इस परिवार की दूसरी फर्म जवाहरलाल जगन्नाथ प्रसाद नाम से बनी, जिसमें मिश्री गट्टा, बूरा का कार्य होता था. सदर बाजार, पियर्सनगंज क्षेत्र में इनका कारोबार था. लाला जगन्नाथ प्रसाद आयुर्वेद के अच्... Read more
हल्द्वानी के इतिहास के विस्मृत पन्ने: 57
यूसुफ साहब बताते हैं कि उन्होंने बचपन में अपने बुजुर्गों से रामगढ़, नथुवाखान, बागेश्वर इत्यादि नाम सुने थे. इन जगहों में वह जाया करते थे. वह फख्र से कहते हैं कि बंजारा बिरादरी पर पहाड़ को पूरा... Read more
आजादी से पहले उत्तराखण्ड में वन आन्दोलन
वन आन्दोलन 1920-21 तक बेगार आन्दोलन का पूरक हो गया था. इन आन्दोलनों के व्यापक सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक तथा मनोवैज्ञानिक परिणाम हुए. इनसे प्रान्तीय प्रशासन, राजनीति और स्वयं राष्... Read more
हल्द्वानी के इतिहास के विस्मृत पन्ने: 56
हल्द्वानी के बरेली रोड में आज भी अब्दुल्ला बिल्डिंग विख्यात है. इसके बारे में माजिद साहब बताते हैं कि उनका जो बगीचा था उसके मुख्य स्थान पर 1902 में बिल्डिंग बननी शुरू हुई और भवन निर्माण के ह... Read more
हल्द्वानी के इतिहास के विस्मृत पन्ने: 55
जहिद हुसैन बताते हैं कि पहले जब संसाधन नहीं थे, पैदल और घोड़ों पर बारात जाया करती थी. 40-50 किमी तक की यात्रा बैण्ड वाले भी करते थे. उनके ताऊ अलताफ की चोरगलिया की किसी बारात में जाते समय हृदय... Read more
नैनीताल में थियेटर का इतिहास करीब एक शताब्दी पुराना है और नैनीताल नगर ने लम्बे समय से रंगमंच के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाई हुई है. ललित तिवारी, निर्मल पांडे, सुदर्शन जुयाल, सुनीता रजवार... Read more