अब मैं सूरज को नहीं डूबने दूंगा
अब मैं सूरज को नहीं डूबने दूंगा - सर्वेश्वर दयाल सक्सेना देखो मैंने कंधे चौड़े कर लिये हैं मुट्ठियाँ मजबूत कर ली हैं और ढलान पर एड़ियाँ जमाकर खड़ा होना मैंने सीख लिया है. घबराओ मत मैं क्ष... Read more
पैमाने की तरह शराब पिया करो पहाड़ियो! – उत्तराखंड महिला आयोग अध्यक्ष की नसीहत
उत्तराखंड के गांवों में अगर आप गये होंगे तो आपको इस बात की जानकारी होगी की शराब ने किस कदर यहां के अनेक परिवार बर्बाद कर दिये हैं. उत्तराखंड की महिलाओं द्वारा हमेशा से शराब का विरोध किया गया... Read more
चम्पावत का बालेश्वर मंदिर: कमल जोशी के फोटो
कुमाऊँ में टनकपुर से लगभग 75 किमी दूर 1670 मीटर की ऊंचाई पर स्थित चम्पावत का मशहूर बालेश्वर मंदिर शिल्प व लोकथात की समृद्ध पूंजी है. ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार चौदहवीं शताब्दी में चम्पावत ब... Read more
चार्ल्स शेरिंग की किताब ‘वेस्टर्न तिब्बत एंड ब्रिटिश बॉर्डरलैंड’ साल 1906 में लन्दन के एडवर्ड आर्नल्ड प्रकाशन ने छापी थी. ब्रिटिश राज की भारतीय सिविल सेवा में कार्य कर चुके चार्ल्स शेरिंग अल... Read more
नैनीताल में नसीरुद्दीन शाह के शुरुआती दिन
देश के सर्वकालीन महानतम अभिनेताओं में से एक नसीरुद्दीन शाह ने अभी कुछ दिन पहले अपना जन्मदिन मनाया है. यह अलग बात है कि अपनी आत्मकथा ‘ एंड देन वन डे’ में वे लिखते हैं – “मेरा जन्म लखनऊ के नजद... Read more
दोगांव की टिक्की न खाई तो क्या खाया
हल्द्वानी-नैनीताल राजमार्ग पर हल्द्वानी से 14 किलोमीटर दूर स्थित दोगांव बहुत लम्बे समय से पहाड़ की तरफ आने-जाने वाली गाड़ियों का एक जरूरी पड़ाव रहा है. और दोगांव का नाम आने पर ऐसा हो ही नहीं... Read more
इस पोस्ट को पिछली पोस्ट के क्रम में पढ़िए. पिछली पोस्ट का लिंक: पचास साल पहले इलाहाबाद में कथाकार अशोक कंडवाल के साथ: प्रेमचंद और उनके बेटे की स्मृतियां ‘नई कहानियाँ’ का सम्पादकीय कार्यालय अम... Read more
अच्छे दोस्त जिंदगी की सबसे बड़ी नेमत होते हैं
4G माँ के ख़त 6G बच्चे के नाम – पंद्रहवीं क़िस्त पिछली क़िस्त का लिंक: लड़कियां चाहे बच्चे जनती मर जाएं, खानदान का झंडा लड़के ही उठाएंगे नया साल शुरू हो गया, साल 2009, तुम्हारे लिए ये नया सा... Read more
ऐतिहासिक रहा है चनौदा का गांधी आश्रम
1929 में महात्मा गांधी ने कुमाऊं की यात्रा की थी. 22 दिनों की इस यात्रा में उनका लक्ष्य क्षेत्रीय स्तर पर राष्ट्रीय आन्दोलन को मजबूती प्रदान करना था. इस दौरान उन्होंने अपना अधिकांश समय कौसान... Read more
‘अम टो मिस्टर हो गया अब यूरप जाना मांगटा है’ – उत्तराखंड के स्वाधीनता संग्राम का एक अनछुआ पहलू
1920 का दशक था. भारत में उन दिनों स्वतन्त्रता आन्दोलन बहुत तेजी से फ़ैल रहा था. राष्ट्रीय चेतना अपने पाँव पसार रही थी और विदेशी वस्तुओं के प्रति नकार का भाव उमड़ने लगा था. उस दौर में गढ़वाल-... Read more