‘प्रेमचंद घर में’ – पुण्यतिथि विशेष
आज प्रेमचंद पुण्यतिथि के अवसर पर पढ़िये ‘प्रेमचंद घर ‘ में का एक अंश : मैं गाती थी, वह रोते थे शिवरानी देवी बंबई में एक रात बुखार चढ़ा तो दूसरे दिन भी पांच बजे तक बुखार नहीं उतर... Read more
तुम होगे साधारण ये तो पैदाइशी प्रधान हैं
इन्हें प्रणाम करो ये बड़े महान हैंदंत-कथाओं के उद्गम का पानी रखते हैंपूंजीवादी तन में मन भूदानी रखते हैंइनके जितने भी घर थे सभी आज दुकान हैंइन्हें प्रणाम करो ये बड़े महान हैं उद्घाटन में दिन... Read more
और जीत गई झंगोरे की खीर
राजधानी से तीन गाड़ियों में अफसरों की एक टीम पहाड़ की तरफ चली, यह तय करने कि सरकार द्वारा बजट में पहाड़ के एक जिले के लिए घोषित आईटीआई को जिले के किस स्थान पर खोला जाए? मसला थोड़ा पेचीदा हो... Read more
कब तक बैठी रहोगी इस तरह अनमनी, चलो घूम आएँ
चलो घूम आएँ - सर्वेश्वर दयाल सक्सेना उठो, कब तक बैठी रहोगीइस तरह अनमनीचलो घूम आएँ.तुम अपनी बरसाती डाल लोमैं छाता खोल लेता हूँबादल –वह तो भीतर बरस रहे हैंझीसियाँ पड़नी शुरु हो गई हैंजब झमाझम... Read more
बौनों से भरे साहित्य-संसार दुनिया में विष्णु खरे एक गुलीवर थे : पुण्यतिथि विशेष
19 सितम्बर 2018 के दिन अशोक पांडे की फेसबुक वाल से : अलविदा विष्णु खरे – 1 जबरदस्त कवि, बड़े सम्पादक, सिनेमा और संगीत के अध्येता, गंभीर पाठक, भाषाओं और यारों के धनी उस आदमी की महाप्रतिभा का... Read more
जब डाकुओं ने काका हाथरसी को कविता सुनाने के सौ रुपये दिये : जन्मदिवस विशेष
यह गजब का संयोग रहा कि 18 सितम्बर को जन्मे काका हाथरसी की मृत्यु भी 18 सितम्बर को ही हुई. काका हाथरसी का जन्म 18 सितंबर 1906 को शिव कुमार गर्ग के घर में हाथरस में हुआ था लेकिन पिता की कम उम्... Read more
आज दुनिया भर में मनाया जाता है रोआल्ड डाल दिवस
बीसवीं सदी में सबसे ज़्यादा पढ़े गए लेखकों में शुमार रोआल्ड डाल ने उपन्यास लिखे, बच्चों के लिए किताबें लिखीं और सबसे महत्वपूर्ण यह कि एक से एक अविस्मरणीय कहानियां लिखीं. (Today is Roald Dahl... Read more
पितृपक्ष: वीरेन डंगवाल की कविता
पितृपक्ष -वीरेन डंगवालमैं आके नहीं बैठूंगा कौवा बनकर तुम्हारे छज्जे परपूड़ी और मीठे कद्दू की सब्ज़ी के लालच मेंटेरूँगा नहीं तुम्हेंन कुत्ता बनकर आऊँगा तुम्हारे द्वाररास्ते की ठिठकी हुई गायक... Read more
ग्यारह सितंबर का एक फोटोग्राफ़
ग्यारह सितम्बर का एक फ़ोटोग्राफ़वे कूद रहे थे जलती मंजिलों सेएकदोकुछेक और- कुछ ऊपर थे, कुछ नीचेएक फोटोग्राफ़र ने उन्हें दर्ज़ कर लिया हैजब वे जीवित थेधरती के ऊपरधरती तक पहुँचते हुए -हर आदमी सा... Read more
गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ की कविता: जहाँ न पटरी माथा फोड़े, ऐसा हो स्कूल हमारा
जहाँ न बस्ता कंधा तोड़े, ऐसा हो स्कूल हमाराजहाँ न पटरी माथा फोड़े, ऐसा हो स्कूल हमारा जहाँ न अक्षर कान उखाड़ें, ऐसा हो स्कूल हमाराजहाँ न भाषा जख़्म उभारे, ऐसा हो स्कूल हमारा जहाँ अंक सच-सच ब... Read more