कहानी : ‘वह भूखी और गन्दी लड़की’
पहली नजर में मैंने उसे पहचाना ही नहीं, पहचानती भी कैसे उसकी तब्दीली की तो सपने में भी कल्पना नहीं कर सकती थी मैं, वैसे भी कल्पना करने की जरूरत ही नहीं थी. उसे तो तभी मैं अपनी स्मृति की कन्दर... Read more
जागो प्यारे : अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
उठो लाल अब आँखे खोलोपानी लाई हूँ मुँह धो लो (Jago Pyare) बीती रात कमल दल फूलेउनके ऊपर भंवरे झूले चिड़िया चहक उठी पेड़ परबहने लगी हवा अति सुंदर नभ में न्यारी लाली छाईधरती ने प्यारी छवि पाई भो... Read more
‘बिद्दू अंकल’ शैलेश मटियानी की प्रतिनिधि कहानी
लोग हमें गाँव में भी ‘बिद्दू’ ही पुकारते थे, दिल्ली शहर तो दिल्ली ही हुआ. यहाँ गाँव भनौरा, तहसील पट्टी, जिला-प्रतापगढ़, यू०पी० के न सिर्फ ये कि गरीब, बल्कि करीबन अनाथ गवई लरिका क... Read more
लोककथा : तपस्या का फल
विरेन आज घर से बाजार के लिये यह कहकर निकला था कि वह पूरा सामान खरीद कर लायेगा. एक दुकान से दूसरी दुकान, दूसरी से तीसरी और फिर चौथी. पत्नी भी साथ में थी. बेटा चौदह साल का हो गया था, उसका यज्ञ... Read more
लोककथा : जिद्दी औरत
एक गांव में एक औरत रहती थी. वह एक विरोधी स्वभाव व बहुत ईर्ष्यालु प्रवृत्ति की थी. कोई उसे कुछ भी सलाह दे वह उसका ठीक उल्टा करती. भले ही उसे कितना भी समझाया जाए, वह कितना ही नुकसान उठाये, परन... Read more
लोककथा : मकड़ी के जाल पर मछलियां
एक गांव में एक परिवार रहता था जिसमें परिवार के नाम पर दो ही सदस्य थे, पति और पत्नी. पति एक मेहनती और समझदार किसान था. पति जितना होशियार व समझदार था पत्नी उतनी ही सीधी-सादी थी, चालाकी व हेर-फ... Read more
कहानी : हार की जीत
-सुदर्शन माँ को अपने बेटे और किसान को अपने लहलहाते खेत देखकर जो आनंद आता है, वही आनंद बाबा भारती को अपना घोड़ा देखकर आता था. भगवद्-भजन से जो समय बचता, वह घोड़े को अर्पण हो जाता. वह घोड़ा बड़... Read more
अर्जन्या: पहाड़ के लोक से जुड़ी कहानी
यकायक मुझे सब कुछ रहस्यमय लगने लगा. घर-आंगन. पेड़-पौधे. लोग. यहां तक कि अपने इजा (मां) और बौज्यू (पिता) भी. मैं घर की देहरी पर बैठा था और मेरी नजर आंगन पर थी. यह आंगन जैसा आंगन नहीं था. जगह-... Read more
देवता भी चले गए लेकिन गुरु ने गांव नहीं छोड़ा
आज रेवती का श्राद्ध है. हीरा गुरु दरवाजे पर बैठकर पूरन और भास्कर दत्त जी का इंतजार करते हुए बहुत देर से सामने डांड़े को ताक रहे थे. घर के आगे सीढ़ीनुमा बंजर खेत बहुत गहराई तक फैले हैं. डांड़... Read more
उम्मीद-भरी प्रतीक्षा के बाद निराशा की जो अथाह थकान होती है, उसी को लेकर टूटी डाल की मानिंद-थकी-माँदी काकी लौट गई थीं. उनका जाना निश्चित था. हम कोशिश करते तब भी वे रुकनेवाली नहीं थीं. किसी ने... Read more