घायल वसंत – हरिशंकर परसाई
कल बसंतोत्सव था. कवि वसंत के आगमन की सूचना पा रहा था – प्रिय, फिर आया मादक वसंत. मैंने सोचा, जिसे वसंत के आने का बोध भी अपनी तरफ से कराना पड़े, उस प्रिय से तो शत्रु अच्छा. ऐसे नासमझ को... Read more
उनचास फसकों की किताब ‘बब्बन कार्बोनेट’
बब्बन कार्बोनेट: द हो, अशोक पाण्डे की क्वीड़ पथाई के क्या कहते हो! पहाड़ की मौखिक कथा परम्परा में ‘क्वीड़’ कहने का भी खूब चलन है. जब फुर्सत हुई, दो-चार जने बैठे तो लगा दी क्वीड़. किस्सागोई त... Read more
मार्कण्डेय की कहानी ‘गरीबों की बस्ती’
यह है कलकत्ता का बहूबाज़ार, जिसके एक ओर सरकारी अफ़सरों तथा महाजनों के विशाल भवन हैं और दूसरी ओर पीछे उसी अटपट सड़क के पास मिल मज़दूरों तथा दूसरे प्रकार के श्रमजीवियों की बस्ती है.(Gareebon K... Read more
‘चाकरी चतुरंग’ की समीक्षा
बहुत सारे मुखौटे हैँ एक दूसरे से अलग -थलग. सबकी सोच भी जुदा-जुदा सी. इनके पीछे छिपे चेहरे व्यवस्था की बागडोर संभालते हैं. चाकर हैं तो सबकी जिम्मेदारी कहीं न कहीं कुछ मान्यताओं और संकल्पनाओं... Read more
महात्मा गाँधी को चिट्ठी पहुँचे : परसाई
यह चिट्ठी महात्मा मोहनदास करमचंद गाँधी को पहुंचे. महात्माजी, मैं न संसद-सदस्य हूँ, न विधायक, न मंत्री, न नेता. इनमें से कोई कलंक मेरे ऊपर नहीं है. मुझमें कोई ऐसा राजनीतिक ऐब नहीं है कि आपकी... Read more
बिन ब्याही लड़की की चिता
पुराने समय की बात है. गोपिया एक दिन घर के आंगन में बैठे-बैठे अपनी दो-ढाई वर्ष की लड़की कुसुमा का हाथ पकड़ कर उसे नचाते हुए गाना गा रहा था- म्यरि होंसिया बालि कुसुमा, छुम रे छुमा छुम,हाजुरी क... Read more
लपूझन्ना जादू है!
किताब उठाते ही लगता है किसी जादूगर ने काले लंबे हैट में हाथ डालकर एक कबूतर निकाल दिया हो. किताब पढ़कर आप ख़त्म नहीं कर पाते. कबूतर के पंख हाथ में फड़फड़ाते हैं. किताब के सफ़हे दिलो-दिमाग पर... Read more
अमरूद का पेड़
घर के सामने अपने आप ही उगते और फिर बढ़ते हुए एक अमरूद के पेड़ को मैं काफी दिनों से देखता हूँ. केवल देखता ही नहीं, इस देखने में और भी चीजें शुमार हैं. तीन-चार साल में बड़े हो जाने, फूलने और फ... Read more
सौला- रूपसा से मैं पूछती हूँ, इस घर में मैं भी कोई हूँ या नहीं? वे अपनी माँ का पक्ष कितनी जल्दी लेते हैं, जैसे सब कसूर मेरा ही रहता हो. मैं यह नहीं कहती कि वे अपनी माँ को घर से बाहर निकाल दे... Read more
इस्मत चुगताई की विवादित कहानी ‘लिहाफ’
जब मैं जाड़ों में लिहाफ़ ओढ़ती हूँ, तो पास की दीवारों पर उसकी परछाईं हाथी की तरह झूमती हुई मालूम होती है और एक दम से मेरा दिमाग़ बीती हुई दुनिया के पर्दों में दौड़ने भागने लगता है. न जाने क्... Read more