एक ऐसे कस्बे की कहानी जहां लगभग सभी मकान मालिकों के पास उनकी ज़मीन के क़ानूनी दस्तावेज़ नहीं हैं.
बेरीनाग : बेरीनाग को नगर पंचायत बने अब 4 साल होने को हैं लेकिन अब तक भी यह तय नहीं हो पाया है कि यहां के रहवासियों से हाउस टैक्स कैसे वसूला जाय? क्योंकि जिस ज़मीन पर उनके घर बने हैं उसकी मिल्कियत के क़ानूनी काग़ज़ात उनके पास नहीं हैं। नगर पंचायत अगर उनसे कर लेती है तो यह ज़मीन पर उनके मालिकाने को भी एक तरह से क़ानूनी वैधता होगी।
गढ़वाल से लेकर नेपाल तक तक़रीबन 125 किमी के दायरे में फ़ैली बर्फ़ से ढकी हिमालयी पहाड़ियों को झांकते कुमाऊँ के इस पहाड़ में, चाय के बाग़ीचों के लिए एकदम माक़ूल माहौल था। तवारीख़ में कोई मौक़ा रहा होगा, जब पहले-पहल चाय के बीज ने यहां की मिट्टी को छुआ होगा और फिर कई हैक्टेयर के दायरे में चाय का एक समृद्ध बाग़ीचा यहां विकसित हो गया।
बीती दो शताब्दियों में यहां चाय का कारोबार ख़ूब फ़ैला। बेरीनाग और चौकोड़ी में चाय की प्रॉसेसिंग के लिए आलीशान फैक्ट्रियां लगाई गईं। ब्रिटिश दौर में यहां बेहतरीन क़िस्म की चाय का उत्पादन हुआ करता था। यहां की चाय के दो ब्रांड, ‘बेरीनाग टी’ और ‘आॅरेंज क्वीन’ ब्रिटेन में भी काफी लोकप्रिय थे।
लेकिन धीरे-धीरे, लापरवाही और अनदेखी के चलते ये कारोबार धीमा होता गया। चाय के बाग़ान सिमटते गए और बीते कुछ दशकों में बाग़ान की जगह एक क़स्बे ने ले ली, जिसका आक़ार लगातार बढ़ता जा रहा है, और इस क़स्बे को 2014 में नगर पंचायत घोषित कर दिया गया है।
पिथौरागढ़ ज़िला प्रशासन द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक़, 1864 में बेरीनाग और चौकोड़ी इलाक़े की ज़मीन, ब्रिटेन में पंजीकृत एक कंपनी, थॉमस मैकिंस एंड एडविरस स्टैपोर्ड की मिल्क़ियत में थी। 1869 में यह कुमाउं अवध प्लांटेशन कंपनी के पास आई और फिर इस कंपनी से इस ज़मीन को जेम्स जॉर्ज स्टीवेंसन, जिसे जेम्स जॉर्ज विलियम्स के नाम से भी जाना जाता है, को एक पंजीकृत विक्रय पत्र/रजिस्टर्ड सेल लेटर में बेच दिया।
रिपोर्ट के मुताबिक़, ”1919 में, इस ज़मीन को ठाकुर देव सिंह बिष्ट और चंचल सिंह बिष्ट ने ख़रीद लिया। प्रशासनिक दस्तावेज़ों में अब तक, यह परिवार ही वह अंतिम परिवार है जो कि इस ज़मीन का मालिक रहा।”
बिष्ट परिवार, जिसे मालदार परिवार भी कहा जाता है, कुमाऊँ का एक बड़ा ज़मीदार परिवार रहा है। 1972 के यूपी सीलिंग एक्ट (उत्तर प्रदेश ज़मीदारी उन्मूलन क़ानून) के दायरे में भी यह ज़मीन नहीं आई क्योंकि यह चाय के उत्पादन से जुड़ी ज़मीन थी। इस क़ानून के अनुच्छेद 6 (1) (D) के मुताबिक़ चाय, कॉफी और रबर के बाग़ानों को इस क़ानून के दायरे से बाहर रखा गया था।
लापरवाही का घुन ज्यूं-ज्यूं चाय के इन बाग़ानों और फ़ैक्ट्री को चाटता गया, एक शिरे से मालदार परिवार ने इस ज़मीन को टुकड़ों-टुकड़ों में बेचना शुरू कर दिया। ज़मीन बेचने की यह क़वायद, क़ानूनी तौर पर रजिट्री करके नहीं की जाती थी, बल्कि शपथ पत्रों या लिखित समझौतों, सादे काग़ज़ और यहां तक कि मौखिक शपथ के आधार पर भी ज़मीन बेची-ख़रीदी गई।
लेकिन यह यूपी सीलिंग एक्ट का उल्लंघन था। क़ानून के अनुच्छेद 6 (3) के मुताब़िक, अगर चाय, कॉफी और रबर की पैदावार से जुड़ी ज़मीन को कभी किसी दूसरे काम में लाया जाता है तो इसे क़ानून के अनुच्छेद 6 (1) का उल्लंघन माना जाएगा, और ज़मीन राज्य की संपत्ति मान ली जाएगी।
प्रकाश बोरा का घर भी बेरीनाग में है, और वह अपने भवन में ही एक दुकान भी चलाते हैं, “हमारे पिताजी ने यह मकान बनवाया था, और अब यहीं इस दुकान में मेरा रोज़गार भी है।” प्रकाश आगे बताते हैं, ”उस समय लोगों को क़ानूनों की ऐसी जानकारी नहीं थी। ज़मीदारों से ज़मीनें इसी तरह, शपथ पत्रों, समझौतों आदि के आधार पर ही ली जाती थी। इसलिए, लोगों ने अपने जीवन भर की गाढ़ी कमाई खर्च कर यहां बसना शुरू किया और बेरीनाग शहर ने आकार लिया। अब हमें यह कहा जा रहा है कि इतना बड़ा शहर ग़ैरक़ानूनी है। इसका क्या मतलब है?”
उधर दूसरी तरफ़ बेरीनाग के उप-ज़िलाधिकारी, विवेक प्रकाश भी मानते हैं, ”क़ानूनी तौर पर अब यह ज़मीन राज्य सरकार की मिल्क़ियत में है, लेकिन अगर इतने बड़े शहर को यहां से हटाया जाता है तो क़ानून व्यवस्था चरमरा जाएगी। इसलिए हमने अपने वरिष्ठ अधिकारियों से अनुरोध किया है कि, एक उच्च स्तरीय समिति बनाकर, और सारे पहलुओं को ध्यान में रखकर, इस मसले को सुलझाया जाना चाहिए।”
स्थानीय विधायक मीना गंगोला कहती हैं, ”मैंने पहले भी सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों से इस मसले पर बात की है। मुझे उम्मीद है कि यह मामला मेरे इसी कार्यकाल में सुलझ जाएगा और बेरीनाग के रहवासियों को उनकी ज़मीनों के क़ानूनी दस्तावेज़ सौंपे जाएंगे।”