एमबीपीजी महाविद्यालय हल्द्वानी के अंग्रेजी विभाग की विभागाध्यक्ष निलोफर अख्तर अंतर्राष्ट्रीय सेमीनारों में हिस्सेदारी करने विदेश जाती ही रहती हैं. ऐसे ही विदेश दौरों में उनकी मुलाक़ात हुई अपने विषय के कुछ विद्वानों से. इस तरह कुमाऊँ के सबसे बड़े महाव... Read more
पहाड़ी लोक गीतों को अपनी सुरीली धुनों से संवारने वाले मोहन उप्रेती के अनेक गीत और नाट्य प्रस्तुतियां आज भी जन मानस के मध्य जीवन्त बनी हुई हैं. यह मोहन उप्रेती की अलौकिक धुन का ही कमाल था कि ’बेडू़ पाको बारा मासा’ जैसा सामान्य लोकगीत लोकप्रिय बनकर अन्... Read more
भारत के प्रथम ऐतिहासिक ग्रंथ राजतरंगिणी के रचियता कल्हण ने ठीक ही कहा है— श्लाध्यः स एव गुणवान् रागद्वेष बहिष्कृता भूतार्थकथने यस्य स्थेयस्येव सरस्वती अर्थात्, ‘वही गुणवान प्रशंसनीय है, जिसकी वाणी राग-द्वेष का बहिष्कार कर न्यायाधीस के समान... Read more
वर्ष था 1977, जब उत्तराखंड में नैनीताल की खूबसूरत वादियों के बीच नैनीताल समाचार की शुरुआत हुई. नैनीताल समाचार ने इमरजेंसी के बाद बने मुश्किल हालातों के बीच अपने लिए एक अलग राह चुनी, यह वह राह थी जो पथरीली थी और जिस पर आजकल के समाचार पत्र चलने से कतरा... Read more
पिछले वर्ष जब लॉकडाउन शुरु हुआ तो सभी लोग अपने-अपने घरों में फंसे थे. ऐसे में हेम पन्त और हिमांशु पाठक ने अपनी दुधबोली के लिये ऑनलाइन एक प्रयास शुरु किया. इस प्रयास का नाम था “म्योर पहाड़, मेरि पछयांण”. 20 से 25 लोगों की टीम जुटाकर इस प्रयास के तहत क... Read more
‘आज इना तक सरकूँगा, कल भिन्हार तक, परसों सिलोर महादेव. अगले दिन भवड़ा, फिर रानीखेत. आठवें दिन अल्मोड़ा पहुँच पाऊँगा.’ कच्छप-गति से सरकने वाले उस विचित्र व्यक्ति ने बताया, आज से लगभग पैंतालीस वर्ष पूर्व.(Aansingh Hirasingh Dharanaula Almor... Read more
भीमताल डाट में बस स्टेशन से 200 मीटर आगे उत्तराखंड का प्राचीन शिव मंदिर है. इसे भीमेश्वर मंदिर कहा जाता है. भीमेश्वर मंदिर के विषय में मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों द्वारा कराया गया था. कुछ इतिहासकारों ने से भीम के द्वारा शिव को समर्पित ए... Read more
पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ में लंबे समय तक संस्कृत के प्राध्यापक और विभागाध्यक्ष रहे डीडी शर्मा अवकाश प्राप्त करने के बाद हल्द्वानी नवाबी रोड में निवास कर रहे थे. वे उत्तरी भारत में अपनी श्रेणी के प्राच्यविद और भाषा शास्त्री माने जाते हैं. कई भारतीय... Read more
आद्यऐतिहासिक काल- ऐतिहासिक काल से पूर्व चतुर्थ-तृतीय सहस्त्राब्दी पूर्व तक आद्यऐतिहासिक काल माना जाता है. उत्तराखण्ड में इस काल के प्रमुख स्त्रोत धार्मिक ग्रन्थ होने के कारण इसे पौराणिक काल भी कहा जाता है. इस काल वास्तविक सभ्यता की शुरुआत हुई. आद्यऐत... Read more
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये क्लिक करें – Support Kafal Tree ऐतिहासिक स्तर पर कुमाऊं के ‘संस्कृतीकृत नाम ‘कूर्मांचल’ का सर्वप्रथम अभिलेखीय उल्लेख चम्पावतस्थ नागमंदिर के अभिलेख में पाया जाता है. पौराणिक परम्परा के अनुयायी लोग इ... Read more