उन दिनों दूध की तकलीफ थी. कई डेरी फर्मों की आजमाइश की, अहीरों का इम्तहान लिया, कोई नतीजा नहीं. दो-चार दिन तो दूध अच्छा, मिलता फिर मिलावट शुरू हो जाती. कभी शिकायत होती दूध फट गया, कभी उसमें से नागवार बू आने लगी, कभी मक्खन के रेजे निकलते. आखिर एक दिन ए... Read more
ऐसा शायद ही कोई महीना जाता कि अलारक्खी के वेतन से कुछ जुरमाना न कट जाता. कभी-कभी तो उसे ६) के ५) ही मिलते, लेकिन वह सब कुछ सहकर भी सफाई के दारोग़ा मु० खैरात अली खाँ के चंगुल में कभी न आती. खाँ साहब की मातहती में सैकड़ों मेहतरानियाँ थीं. किसी की भी तल... Read more
चौधरी इतरतअली ‘कड़े’ के बड़े जागीरदार थे. उनके बुजुर्गों ने शाही जमाने में अंग्रेजी सरकार की बड़ी-बड़ी खिदमत की थीं. उनके बदले में यह जागीर मिली थी. अपने सुप्रबन्धन से उन्होंने अपनी मिल्कियत और भी बढ़ा ली थी और अब इस इलाके में उनसे ज्यादा धनी-मानी को... Read more
मृदुला मैजिस्ट्रेट के इजलास से जनाने जेल में वापस आयी, तो उसका मुख प्रसन्न था. बरी हो जोने की गुलाबी आशा उसके कपोलों पर चमक रही थी. उसे देखते ही राजनैतिक कैदियों के एक गिरोह ने घेर लिया ओर पूछने लगीं, कितने दिन की हुई?(Munshi Premchand Story Jail) मृ... Read more
हरिधन जेठ की दुपहरी में ऊख में पानी देकर आया और बाहर बैठा रहा. घर में से धुआँ उठता नजर आता था. छन-छन की आवाज भी आ रही थी. उसके दोनों साले उसके बाद आये और घर में चले गए. दोनों सालों के लड़के भी आये और उसी तरह अंदर दाखिल हो गये पर हरिधन अंदर न जा सका.(... Read more
जुम्मन शेख़ और अलगू चौधरी में गाढ़ी मित्रता थी. साझे में खेती होती थी. कुछ लेन-देन में भी साझा था. एक को दूसरे पर अटल विश्वास था. जुम्मन जब हज करने गए थे, तब अपना घर अलगू को सौंप गए थे, और अलगू जब कभी बाहर जाते, तो जुम्मन पर अपना घर छोड़ देते थे. उनम... Read more
संध्या का समय था. डॉक्टर चड्ढा गोल्फ़ खेलने के लिए तैयार हो रहे थे. मोटर द्वार के सामने खड़ी थी कि दो कहार एक डोली लिये आते दिखाई दिए. डोली के पीछे एक बूढ़ा लाठी टेकता चला आता था. डोली औषाधालय के सामने आकर रुक गई. बूढ़े ने धीरे-धीरे आकर द्वार पर पड़ी... Read more
ईश्वरी एक बड़े ज़मींदार का लड़का था और मैं एक ग़रीब क्लर्क का, जिसके पास मेहनत-मजूरी के सिवा और कोई जायदाद न थी. हम दोनों में परस्पर बहसें होती रहती थीं. मैं ज़मींदारी की बुराई करता, उन्हें हिंसक पशु और ख़ून चूसने वाली जोंक और वृक्षों की चोटी पर फूलन... Read more
सौला- रूपसा से मैं पूछती हूँ, इस घर में मैं भी कोई हूँ या नहीं? वे अपनी माँ का पक्ष कितनी जल्दी लेते हैं, जैसे सब कसूर मेरा ही रहता हो. मैं यह नहीं कहती कि वे अपनी माँ को घर से बाहर निकाल दें, पर ऐसा भी तो नहीं होना चाहिए कि उन्हें कुछ कहा ही न जाए.... Read more
यह कहना भूल है कि दाम्पत्य-सुख के लिए स्त्री-पुरुष के स्वभाव में मेल होना आवश्यक है. श्रीमती गौरा और श्रीमान् कुँवर रतनसिंह में कोई बात न मिलती थी. गौरा उदार थी, रतनसिंह कौड़ी-कौड़ी को दाँतों से पकड़ते थे. वह हँसमुख थी, रतनसिंह चिंताशील थे. वह कुल-मर... Read more