उत्तराखंड में पंचाचूली चोटियों का नाम सभी जानने वाले हुए. कच्ची सड़क बन जाने से अधिकतर तो अब इसके पास भी जाने लगे हैं. पंचाचूली ग्लेशियर तक जाने के लिए दारमा घाटी में बसे दांतू गांव से पैदल रास्ता है. पहले दर से यहां को पैदल रास्ता था अब इस घाटी के न... Read more
आज एक बुजुर्ग से मुलाकात हुई तो उनके बाजार में आने का कारण यूं ही बस पूछ बैठा. इस पर उन्होंने अपनी व्यथा सुनाई कि सारे दस्तावेज दे दिए लेकिन फिर भी बार-बार कह देते हैं कि ये लाओ, वो लाओ. राज्य आंदोलन के समय के कई सारे दस्तावेज-पेपर दे दिए लेकिन अभी त... Read more
पिंडर घाटी के द्वाली में फसे 42 देशी और विदेशी पर्यटकों को रेस्क्यू कर लिया गया है. लगभग 15 बंगाली पर्यटकों को पांच टैक्सियों के जरिए कपकोट लाया गया. जहां उनके नाम, पता आदि की जानकारी जुटाने के बाद सभी पर्यटकों का मेडिकल परीक्षण किया गया. वहीं सुंदरढ... Read more
बचपन में यदा-कदा बुड़-माकोट (पिताजी के ननिहाल) जाना होता था. वहां बगल के पाथरनुमा दोमंजिले घर की खिड़की पर रिश्ते के छोटे चाचा बांसुरी बजाते दिखाई देते. उन्हें सुनता तो मैं हैरत में पड़ जाता. पहाड़ी गानों की धुनें को बेहद मीठे स्वरों में हू-ब-हू निका... Read more
क़रीब साढ़े तीन हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित नामिक ग्लेशियर से निकलने वाली जलधारा अपने साथ कई और धाराओं को समेट जब नामिक-कीमू गांव के पाँव पखारते हुए आगे बढ़ती है तो जैसे पल-पल अपनी सामर्थ्य काअहसास कराती है. इठलाती ही यही नदी रामगंगा(पूर्वी) कहलाती ह... Read more
महानगरों के साथ ही अब तो पहाड़ों में भी जमीन गायब हो मकान ही मकान बनने लगे हैं. बहरहाल अब ये कोई नई बात नहीं है, हर कोई यह सब जानता ही है. पहाड़ों में तो खेती बंजर होती चली जा रही है. खेती के बारे में गांव में किसी से जिक्र भर कर दो, फिर तो उससे आधेक... Read more
चितरंजन दासजी ने उत्तराखंड के हिमालयी तीर्थों की अपनी यायावरी यात्रा को अपनी किताब ‘शिलातीर्थ’ में बहुत ही सजीव और अद्भुत ढंग से सजोया है. 1959 में केदारनाथ और बद्रीनाथ की पैदल यात्रा में वो अपने सांथ पाठक को भी अपने सांथ ले उससे बतियाते... Read more
ऊपर ज्योरागली में धूप निखर आई थी. कुछेक साथी वहां पहुंच भी गए थे तो ठंड में जमी रूपकुंड झील के किनारे से मैंने भी ज्योरागली में धूप सेंकने का मन बनाते हुए कदम बढ़ा लिए. बेहद तीखी हवा जैसे इम्तेहान लेना चाहती थी. ज्योरागली पहुंचकर सामने पहली बार नंदाघ... Read more
रूपकुंड यहां से करीब तीन किलोमीटर दूर है. लेकिन उंचाई ज्यादा होने से रास्ता बहुत लंबा और थकान भरा महसूस होता है. रूपकुंड पहुंचने तक आठ बज चुके थे. मौसम की बेरुखी के कारण इस बार रूपकुंड में झील का नामोनिशान नहीं था. झील का पानी जम कर ठोस बर्फ में तब्द... Read more
आज बगुवावासा में पड़ाव था. रूपकुंड की तलहटी पर ठंडा पड़ाव है बगुवावासा. अविनखरक से सात किलोमीटर पर है पाथर नचौनियां और वहां से साढ़े चार किलोमीटर की दूरी पर है बगुवावासा. रकसेक कंधों पर डाल और आली बुग्याल के किनारे से होते हुए वेदनी बुग्याल के शीर्ष... Read more