अपनी समस्याओं को लगातार पत्र और सभाओं के माध्यम से दरबार को बताने के प्रयासों के बाद भी अहंकारी दीवान चक्रधर जुयाल और महत्वाकांक्षाओं से भरे डीएफओ पदमदत्त रतूडी, रंवाई और जौनपुर के जन आक्रोश और जन भावनाओं की अनदेखी कर रहे थे. नवंबर 1929 को पदम दत्त र... Read more